Sunday, January 2, 2011

sushil

मेरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे
मेरे भाई,मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले.

लोग हर मोड़ पे रूक रूक के सभलते क्यूं हैं.
इतना डरते हैं, तो फिर घर से निकलते क्यूं हैं.

जुगनुओं को साथ लेकर रात रोशन कीजिये
रास्ता सूरज का देखा तो सहर हो जाएगी

चाँद को हमने कभी ग़ौर से देखा ही नहीं
उससे कहना के कभी दिन के उजालों में मिले

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sushil R tyagi
vadodara
gujarat
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